मुंडेश्वरी धाम: रहस्य जान रह जाएंगे हैरान
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दरअसल बिहार में एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थल हैं जो अपने अंदर ऐसे ऐसे कई रहस्य छुपाए हुए हैं जिसकी सच्चाई समय-समय पर दुनिया के सामने आती है तो दुनिया हैरान हो जाती है. इन्हीं में से कुछ ऐसे भी हैं धार्मिक स्थल हैं जिनके रहस्य को कोई अब तक समझ नहीं पाया है. ऐसा ही एक बिहार का कैमूर जिला पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है. इन्ही पहाड़ों के बीच पंवरा पहाड़ी के शिखर पर मौजूद है माता मुंडेश्वरी धाम मंदिर.
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इस मंदिर को शक्ति पीठ भी कहते हैं जिसके बारे में कई बातें प्रचलित हैं जो इस मंदिर के विशेष धार्मिक महत्व को दर्शाता है. यहां कई ऐसे रहस्य भी हैं जिसके बारे में अब तक कोई नहीं जान पाया. यहां बिना रक्त बहाए बकरे के बलि दी जाती है और पांच मुख वाले भगवान शंकर की प्राचीन मूर्ति की जो दिन में तीन बार रंग बदलती है. पहाड़ों पर मौजूद माता के मंदिर पर पहुंचने के लिए ह लगभग 608 फीट ऊंचे पहाड़ की चढ़ाई करनी पड़ती है. यहां प्राप्त शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 389 ईस्वी के आसपास का है जो इसके प्राचीनतम होने का सबूत है.
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पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ हैं जिनको देखकर लगता है कि उन पर श्री यंत्र सिद्ध यंत्र मंत्र उत्कीर्ण हैं. जैसे ही आप मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पहुंचेंगे वातावरण पूरी तरह से भक्तिमय लगने लगता है. सीढ़ियों के सहारे मंदिर के दरवाजे पर पहुंचने के साथ ही पंवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित मां मुंडेश्वरी भवानी मंदिर की नक्काशी अपने आप में मंदिर की अलग पहचान दिलाती है. मंदिर कितनी प्राचीन है और मंदिर में रखी मूर्ति कब और किस तरह के पत्थर से बनी है, ये सब बातें मंदिर में प्रवेश करने के पहले एक शिलालेख में अंकित है. इसपर साफ-साफ लिखा है की मंदिर में रखी मूर्तियां उत्तर गुप्त कालीन हैं और यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है.
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मंदिर बेहद प्राचीन है साथ ही बेहद धार्मिक भी. कहते हैं कि इस मंदिर में माता के स्थापित होने की कहानी भी बड़ी रोचक है. मान्यता के अनुसार इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे, जो लोगों को प्रताड़ित करते थे. जिनकी पुकार सुन माता भवानी पृथ्वी पर आईं थीं और इनका वध करने के लिए जब यहां पहुंचीं तो सबसे पहले चंड का वध किया उसके निधन के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया था. लेकिन माता इस पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध कर दिया था. इसी के बाद ये जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
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मंदिर के अंदर प्रवेश करने के बाद मंदिर के पूर्वी खंड में देवी मुंडेश्वरी की पत्थर से भव्य व प्राचीन मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जहां मां वाराही रूप में विराजमान हैं. जिनका वाहन महिष है. माता की मूर्ति ऐसी भव्य है जिस पर नजर अधिक देर तक टिक नहीं सकती है. वहीं मंदिर के भीतर भी ऐसी भव्यता और बनावट है जो मंदिर को और भी आकर्षक बना देती है. भीतर मंदिर चार पायों पर टिका हुआ है.
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मंदिर के अंदर दो ऐसे रहस्य है जिसकी सच्चाई आज तक कोई नहीं जान पाया जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. अपनी आंखों से देखते भी हैं, लेकिन समझ नहीं पाते हैं कि आखिरकार ये होता कैसे है? मंदिर के पुजारी ने हमें बताया की इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि की प्रथा है. माता से मांगी हुई मनोकामना पूरी हो जाती है वे इस मंदिर में आकर बकरे की बलि देते हैं. लेकिन, यहां की बलि दूसरी किसी भी जगह की बलि प्रथा से अलग है.
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यहां माता के चरण में बलि भी चढ़ जाती है, लेकिन खून का एक कतरा बाहर नहीं निकलता है. पूजा होने के बाद बलि देने के लिए बकरे को मंदिर के भीतर माता के समक्ष लाया जाता है. बकरे को माता के सामने लाने के बाद मंदिर के पुजारी ने बकरे के चारों पैरो को मज़बूती से पकड़ लेता है और माता के चरणों में स्पर्श करने के बाद मंत्र का उच्चारण करता है. बकरे को माता के चरण के सामने रख देता है और फिर बकरे पर पूजा किया हुआ चावल छिड़कता है. जैसे ही वो चावल बकरे पर पड़ता है बकरा अचेत हो जाता है.
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कुछ देर तक बकरा अचेत रहता है. जब पुजारी कुछ मंत्र पढ़ते हैं और माता के चरण में पड़े फूल को फिर से बकरे पर फेंकते हैं तो बकरा ऐसा जगता है मानो वो नींद से जागा हो. इस प्रकार बकरे की बलि की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. यही इस बलि की अनोखी परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है. इस बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसकी जान नहीं ली जाती है. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परम्परा है जिसे देख भक्त माता का जोर जोर से जयकारा लगाने लगते हैं. श्रद्धालु इसे माता का चमत्कार मानते हैं.